बी ए - एम ए >> एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी प्रथम प्रश्नपत्र - हिन्दी काव्य का इतिहास एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी प्रथम प्रश्नपत्र - हिन्दी काव्य का इतिहाससरल प्रश्नोत्तर समूह
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हिन्दी काव्य का इतिहास
प्रश्न- रीतिकालीन कवियों के आचार्यत्व पर एक समीक्षात्मक निबन्ध लिखिए।
उत्तर -
"हिन्दी में लक्षण ग्रन्थों की परिपाटी पर रचना करने वाले जो सैकड़ों कवि हुए हैं वे आचार्य की कोटि में नहीं आ सकते। वे वास्तव में कवि ही थे। ऐसा कहकर आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने इन रीतिकालीन लक्षण ग्रन्थकारों के आचार्यत्व पर प्रश्नचिह्न लगा दिया है। उनका मत है कि -
(1) आचार्यत्व के लिए जिस सूक्ष्म विवेचन शक्ति एवं पर्यालोचन शक्ति की आवश्यकता होती है, उसका अभाव इन कवियों में था।
(2) काव्यांगों का विस्तृत विवेचन तर्क द्वारा खण्डन- मण्डन एवं नवीन सिद्धान्तों का 'प्रतिपादन भी हिन्दी रीति ग्रन्थों में नहीं हुआ।
(3) इन रीति ग्रन्थकारों का प्रमुख उद्देश्य कविता करना था, शास्त्र विवेचन नहीं, अतः कवि लोग एक ही दोहे में अपर्याप्त लक्षण देकर अपने कवि कर्म में प्रवृत्त हो जाते थे।
(4) काव्यांगों के सुव्यवस्थित एवं तर्कपूर्ण विवेचन के लिए सुविकसित गद्य का होना 'अनिवार्य है, किन्तु उस समय तक गद्य के विकास न हो सकने के कारण पद्य में ही विवेचन होता था जो अपर्याप्त था, परिणामतः विषय का स्पष्टीकरण नहीं हो पाता था।
(5) एक दोहे में अपर्याप्त लक्षण देकर वे उसके उदाहरण देने में प्रवृत्त हो जाते थे, परिणामतः अलंकार, आदि के स्वरूप का ठीक-ठीक बोध नहीं होता। कहीं-कहीं तो उदाहरण भी गलत दिये गये हैं।
(6) अलंकारों के वर्गीकरण एवं विश्लेषण में वैज्ञानिक दृष्टि का अभाव है। काव्यांगों के लक्षण विशेषतः अलंकारों के लक्षण भ्रममूलक, अपर्याप्त और अस्पष्ट हैं।
(7) इन्होंने केवल शृंगार रस के विवेचन में ही रुचि ली है, अन्य रसों की प्रायः उपेक्षा की गयी है। इस प्रकार इनका रीति विवेचन एकांगी एकपक्षीय अधूरा है।
(8) शब्द - शक्तियों एवं दृश्य काव्य (नाटक) का विवेचन भी इन लक्षण ग्रन्थकारों ने बहुत कम किया है। भिखारीदास एवं प्रताप साहि ने शब्दशक्तियों का जो थोड़ा-बहुत विवेचन किया है। उसमें विसंगति दिखाई पड़ती है।
(9) हिन्दी के इन रीति ग्रन्थकारों में मौलिक दृष्टि का अभाव है। संस्कृत काव्यशास्त्र के अनुकरण पर इन्होंने अपने रीति ग्रन्थों का निर्माण किया। हिन्दी के अधिकतर अलंकार ग्रन्थ चन्द्रालोक (जयदेव), कुवलयानन्द (अत्यय दीक्षित) के आधार पर निर्मित हुए। परिणामतः किसी नये सिद्धान्त या वाद की स्थापना हिन्दी के लक्षण ग्रन्थकार नहीं कर सके।
(10) आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के अनुसार "इन्होंने शास्त्रीय मत को श्रेष्ठ और अपने मत को गौण मान लिया, इसलिए स्वाधीन चिन्तन के प्रति एक अवज्ञा का भाव आ गया।"
(11) हिन्दी के इन रीति ग्रन्थकारों का ज्ञान अपरिपक्व था। वे स्वयं अधूरे एवं अधकचरे ज्ञान के आधार पर काव्यांग निरूपण कर रहे थे, अतः विश्लेषण में अस्पष्टता आनी स्वाभाविक थी।
(12) ये लक्षण ग्रन्थकार काव्य मर्मज्ञ तो थे पर विवेचन के लिए अपेक्षित कुशाग्र बुद्धि एवं चिन्तन-मनन का अभाव होने से वे किसी मौलिक सद्भावना का सूत्रपात न कर सके।
(13) डॉ. नगेन्द्र का मत "हिन्दी के रीति आचार्य निश्चय ही किसी नवीन सिद्धान्त का आविष्कार नहीं कर सके। किसी ऐसे व्यापक आधारभूत सिद्धान्त का जो काव्य चिन्तन को एक नई दिशा प्रदान करता, सम्पूर्ण रीतिकाल में अभाव है। इस प्रकार हिन्दी रीतिग्रन्थों द्वारा काव्यशास्त्र का कोई महत्वपूर्ण विकास नहीं हो सका।
(14) इन लक्षण ग्रन्थकारों का मूल उद्देश्य काव्य रसिकों को काव्यशास्त्र से परिचित कराना तथा अपने पाण्डित्य का सिक्का जमाना था। उनके समक्ष काव्यशास्त्र की कोई गम्भीर समस्या थी ही नहीं जिसका समाधान करने का वे प्रयास करते।
(15) दरबारी परिवेश में तत्कालीन युग की रुचि गम्भीर विषयों की मीमांसा की ओर उतनी नहीं थी जितनी रसिकता की ओर थी, अतः इन कवियों ने काव्यांगों का सतही विवेचन किया है।
(16) भिखारीदास एवं केशव के अलंकार विवेचन एवं वर्गीकरण में अनेक त्रुटियाँ हैं। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने इन्हीं न्यूनताओं की ओर इंगित करते हुए कहा है- "संस्कृत में अलंकार शास्त्र को लेकर जैसी सूक्ष्म विवेचना हो रही थी, उसकी कुछ भी झलक इसमें नहीं पायी जाती। शास्त्रीय विवेचना तो बहुत कम कवियों को इष्ट थी, वे तो लक्षणों को कविता करने का बहाना भर समझते थे। वे इस बात की परवाह नहीं करते थे कि उनका निर्दिष्ट कोई अलंकार किसी दूसरे अन्तर्भुक्त हो जाता है, या नहीं।
(17) रीति ग्रन्थकारों ने नायिका भेद पर अत्यन्त व्यापक एवं विशद विवेचन करते हुए अनेक ग्रन्थ वात्स्यायन के कामसूत्र को आधार बनाकर लिखे। इसी के अन्तर्गत शृंगार का भी पर्याप्त विवेचन हुआ है।
(18) संस्कृत काव्यशास्त्र में सूत्र कारिका एवं टीका की जो पद्धति चल रही थी उसका आधार इन रीति ग्रन्थकारों ने ग्रहण नहीं किया, इसलिए वे विषय का स्पष्टीकरण करने में सफल नहीं हुए।
(19) रीतिकाल एक इन लक्षण ग्रन्थकारों ने श्रृंगार रस निरूपण के नाम पर विलासी राजाओं एवं दरबारियों को शृंगार रस से लबालब भरे हुए चषकों के साथ-साथ काव्य की सरसता का पान भी कराया।
(20) भले ही हम इन्हें 'आचार्य' न मानें किन्तु हिन्दी में काव्यशास्त्र का द्वार खोलने का श्रेय इन रीति ग्रन्थकारों को अवश्य दिया जा सकता है।
उपर्युक्त विवेचन के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि हिन्दी में लक्षण ग्रन्थों की रचना करने वाले ये सैकड़ों कवि शुद्ध रूप से आचार्य कोटि में नहीं आते, वे कवि ही हैं।
डॉ. नगेन्द्र ने आचार्यों की तीन कोटियाँ मानी हैं :
(अ) उद्भाव आचार्य - जो किसी नवीन सिद्धान्त का प्रतिपादन करें।
(ब) व्याख्याता आचार्य - जो स्थापित मत की व्याख्या करें।
(स) कवि शिक्षक आचार्य - जो काव्यशास्त्र को सरस रूप में अवतरित करें।
निश्चय ही ये रीति ग्रन्थकार प्रथम वर्ग के आचार्य नहीं हैं क्योंकि उन्होंने किसी नवीन सिद्धान्त का प्रतिपादन नहीं किया। वे द्वितीय वर्ग में आने वाले व्याख्याता आचार्य भी नहीं हैं क्योंकि उन्होंने स्थापित मत की व्याख्या करने का काम भी नहीं किया। वे वस्तुतः तृतीय वर्ग के कवि शिक्षक आचार्य माने जा सकते हैं, क्योंकि उन्होंने लक्षण ग्रन्थ लिखकर काव्यशास्त्र की परम्परा को सरस रूप में हिन्दू में अवतरित करने का सराहनीय कार्य अवश्य किया है।
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- प्रश्न- रीतिकालीन साहित्यिक ग्रन्थों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- प्रश्न- रीतिकाल की सांस्कृतिक परिस्थितियों पर प्रकाश डालिए।
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- प्रश्न- रीतिकालीन कवि बोधा के कवित्व पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- रीतिकालीन कवि मतिराम के साहित्यिक जीवन पर प्रकाश डालिए।
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- प्रश्न- द्विवेदी युग की छः प्रमुख विशेषताएँ बताइये।
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- प्रश्न- छायावादी काव्य में अभिव्यक्त नारी सौन्दर्य एवं प्रेम चित्रण पर टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- छायावाद की काव्यगत विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- छायावादी काव्यधारा का क्यों पतन हुआ?
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- प्रश्न- प्रगतिवादी काव्य की प्रमुख प्रवृत्तियों का वर्णन कीजिए।
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- प्रश्न- 'नयी कविता' की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- समसामयिक कविता की प्रमुख प्रवृत्तियों का समीक्षात्मक परिचय दीजिए।
- प्रश्न- प्रगतिवाद का परिचय दीजिए।
- प्रश्न- प्रगतिवाद की पाँच सामान्य विशेषताएँ लिखिए।
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- प्रश्न- प्रयोगवाद और नई कविता क्या है?
- प्रश्न- 'नई कविता' से क्या तात्पर्य है?
- प्रश्न- प्रयोगवाद और नयी कविता के अन्तर को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- समकालीन हिन्दी कविता तथा उनके कवियों के नाम लिखिए।
- प्रश्न- समकालीन कविता का संक्षिप्त परिचय दीजिए।